परमपूज्य दिव्यानन्द भारती जी, 5 मई 1992 अक्षय तृतीया के दिन माता जी का इस धरातल पर अवतरण हुआ। मध्यप्रदेश के एक सामान्य परंतु सुसंस्कृत परिवार में माता जी का जन्म हुआ। उन्होंने अपने बचपन से ही, 3 साल की आयु से ही उन्हें गुरु का सानिध्य मिला परमपूज्य लालानन्द भारती जी जैसे तपस्वी शान्त और सत् शील महात्मा के सानिध्य में रहते हुए उन्होंने ध्यान सहित अनेकों प्रकार के साधन भजन किये।
विशुद्धान्तकरण में बचपन के आयुसे ही किये हुए साधन भजनों की वजह से अध्यात्मिक रुची उनकी बढ़ती गई 2012 में उन्होंने सन्यास की दीक्षा लेली। तत्पूर्व माँ आनंदमय आश्रम में उन्होंने अपने सामान्य शुरूआती शिक्षाओं को गृहण किया। शिक्षाओं के साथ साथ ही उन्होंने इंदौर संगीत विद्यालय से एम ए की शास्त्रीय संगीत गायन में पदवि प्राप्त की। आध्यात्म की रुची के कारण उन्होंने अल्पायु से ही अपने गुरुजी के आदेश से धर्म प्रचार प्रसार का कार्य शुरू किया। आठ साल के छोटी आयु से ही उन्होंने भागवत कथाएं, अनेको विषयों पर प्रवचन इत्यादे आरम्भ करकर प्रचार-प्रसार तथा लोक जागरण का कार्य आरम्भ किया। साथ ही साथ वे अपने जीवन में अनेको प्रकार के शास्त्रों का अध्धयन करते रहे।
वेदांत, पृष्टांत रेभाश उसी के साथ आगम के अनेको गूढ़ और रहस्यों को उन्होंने अध्ययन करते हुए उस पर महारत हासिल करने का काम किया अपनी गुरु की शिक्षाओं को अपने अन्तः करण में समाते हुए अनेकों प्रकार के अध्यात्मिक अनुभवों को साधते हुए परमपूज्य माता जी ने अपने जीवन में दिव्यता प्राप्त की और इसलिए उनका नाम दिव्यानन्द सरस्तवती जी रखा गया।
माता जी ने अपने विशुद्ध अन्तः करण की वजह से और गुरु कृपा की वजह से बहुत अल्प काल में अनेकों विद्याओं को साध लिया उनके अनुभवों के माध्यम से मिली हुई विद्याओं को उन्होंने लोक कल्याण के लिए उपयोगित किया। ईश्वी सन 2022 के फरवरी में बसंत पंचमी के दिन अपने गुरु के आदेश से नए आश्रम की शुरुआत की उस आश्रम का नाम है "प्रत्यभिज्ञा दर्शन आश्रम"। "प्रत्यभिज्ञा" शब्द अभिनव गुप्त के शिष्य सोमदत्त के प्रत्यभिज्ञ हृदयम शब्द से लिया गया है । आइये इस सुन्दर साधना में संस्कृति में हम आपका स्वागत करते है।
ॐ तत्सत।।